रिअल वास्तु

वास्तुकला का विज्ञान.

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रिअल वास्तु के बारे में संक्षिप्त

वास्तु ब्रह्माण्डीय ऊर्जा अथवा वास्तु ऊर्जा के प्रभाव का केन्द्रीयकरण एवं स्रोत है| आदि काल से सनातन ग्रंथों में चुम्बकीय प्रवाहों, दिशाओं, वायु प्रभाव, गुरुत्वाकर्षण के नियमों को ध्यान में रखते हुए वास्तु शास्त्र की रचना की गयी तथा बताया गया कि इस नियमों के पालन से सुख-शांति आती है और धन-धान्य में वृद्धि होती है| वास्तु वस्तुतः पृथ्वी, जल, आकाश, वायु और अग्नि इन पांच तत्वों के समानुपातिक सम्मिश्रण का नाम है| इसके सही सम्मिश्रण से बायो-इलेक्ट्रिक एनर्जी की उत्पत्ति होती है, जिससे मनुष्य को उत्तम स्वास्थ, धन एवं ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है|

मूल रूप से वास्तु संस्कृत शब्द 'वास' से बना है, जिसका अर्थ है “रहना” वास्तु की उत्पत्ति को 'वसु' या 'पृथ्वी' के रूप में परिभाषित किया गया है, ताकि धरती और उससे ऊपर की सभी रचनाओं को वास्तु कहा जाए। शाब्दिक रूप से वास्तु भवन के स्थल और भवन दोनों पर लागू होता है। इसलिए स्थल, वास्तुकला, परिदृश्य और संरचनाओं के विज्ञान के साथ-साथ ज्योतिष का चयन वास्तु विज्ञान का घटक हैं।

हमारी सेवाएँ

हम घर,कार्यालय, दुकान और प्लॉट चयन के लिए वैज्ञानिक वास्तु परामर्श प्रदान करते हैं। वास्तु विशेषज्ञ से वास्तु शास्त्र परामर्श प्राप्त करें।.

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कार्यालय वास्तु

ऑफिस प्रॉपर्टी साइन करने से पहले सही संपत्ति का चयन करना जो आपके भविष्य के जीवन के लक्ष्यों का समर्थन करता है।

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भूखंड वास्तु

जब आप प्लॉट खरीदने की योजना बनाते हैं, तो उत्तर दिशा की ओर मुंह करना पसंद करते हैं क्योंकि यह बहुत शुभ माना जाता है।

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गृह वास्तु

घर में सबसे महत्वपूर्ण स्थान प्रवेश द्वार है जिसका पूर्व की ओर मुख होना चाहिए क्योंकि इसे शुभ दिशा के रूप में जाना जाता है।

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वास्तु विशेषज्ञ

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राजन् वासु नायर

वास्तु विशेषज्ञ

भारतवर्ष के केरल राज्य के एक प्रसिद्ध वास्तु शिल्पकार आचार्य श्री परमेश्वर नारायण नायर राजा-महाराजाओं के वास्तु शिल्पकार थे, उन्हें वास्तु ज्ञान उनके पूर्वजों से मिला था| वास्तु का अपार ज्ञान रखने वाले इस महापुरुष के निर्देशन में अनेक वास्तु भवनों का निर्माण हुआ जो आज भी देखने को मिलते हैं|

20 वीं सदी की शुरुआत में स्वतन्त्रता क्रांति के विध्वंसक रूप लेने और अधिक नवनिर्माण कार्य न होने एंव सरकारी सेना में भर्ती होने से उनके पुत्र इस ज्ञान का उपयोग नहीं कर सके किन्तु वर्तमान में उनकें वंशजों को इस विद्या में निपूर्णता प्राप्त हैं| उनके पौत्र श्री राजन वासु नायर जी ने अभी तक अनके भवनों, कारखाने एंव अन्य इमारतों का निर्माण वास्तु नियमों के अनुरूप करवाया जिससे उनमें रहने वाले लोग उनके कृतज्ञ हैं क्योंकि वास्तु नियमों के अनुरूप जीवन जीने से आज भी सुख, शांति और समृद्धि उनके परिवारों में व्याप्त हैं|

श्री राजन वासु नायर जी स्वयं वास्तु नियमों और पञ्च तत्वों के सिद्धांतों के अनुरूप अपनी जीवन शैली को बनाया हैं | अपने पूर्वजों के वास्तुज्ञान को अपनी दिनचर्या, कार्यशैली में उपयोग करते है और लोगों को भी इसका उपयोग करने के लिए प्रोत्साहित करते है| उनका मानना हैं कि किसी भी भवन का निर्माण प्राकृतिक व्यवस्था के अनुरूप होना चाहिए जिससे मनुष्य प्राकृतिक स्रोतों को भवन के माध्यम से अपने कल्याण के लिए उपयोग कर सके| वायुमंडल और ब्रह्माण्ड में अनेकों अदृश्य उर्जायें एवं शक्तियां हैं जिसे मनुष्य ज्ञान के अभाव में न तो देख सकता है और न ही महसूस कर सकता है किन्तु इसका प्रभाव दीर्घ काल में अनुभव होता है| “यथा ब्रहमांडे तथा पिंडे” जो इस ब्रह्माण्ड में है वही मनुष्य देह में है -चरक संहिता के इस श्लोक में पंचतत्व (वास्तु) का ज्ञान समाहित है|.

पञ्च तत्वों का सार

मानव शारीर पञ्च तत्वों से निर्मित होता है और अंततः पञ्च तत्वों में ही विलीन हो जाता है|


भूमि + गगन + वायु + अग्नि + नीर = निर्माण क्रिया
देह या शरीर– भूमि - गगन – वायु - अग्नि - नीर = ध्वंस प्रक्रिया


मानव देह या शरीर, मस्तिस में आकाश, कन्धों में अग्नि, नाभि में वायु, घुटनों में पृथ्वी, पादांत में जल आदि तत्वों का निवास है| आत्मा और परमात्मा यह दोनों ही निराकार है| दोनों को केवल महसूस किया जा सकता है| इसीलिए स्वर महाविज्ञान में प्राण वायु आत्मा मानी गई है और यही प्राण वायु जब शरीर से निकल कर सूर्य में विलीन हो जाती है, तब शरीर निष्प्राण हो जाता है| इसलिए सूर्य को भूलोक में समस्त जीवों, पेड़–पौधों का जीवन आधार हैं अर्थात सूर्य सभी प्राणियों के प्राणों का स्रोत है| सूर्य जब उदय होता है, तब सम्पूर्ण संसार में प्राणाग्नि का संचार आरम्भ होता है, क्योंकि सूर्य की किरणों में सभी रोगों को नष्ट करने की शक्ति मौजूद है|